गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

कहाँ गया जनतंत्र



                         बेकसौ -मजबूर  इंसां को दुआ देता हूँ मैं,
                         वार करता है कोई तो मुस्कुरा देता हूँ मैं !

                        प्यार से मिले जो कोई , तो  गले लगा लेता हूँ मैं  ,
                        नफ़रत की आग को , सीने मे दबा देता हूँ मैं  !

  










                                                                         



  बेकसौ -मजबूर  इंसां को दुआ  देता हूँ मैं ,

  उच्च -नीच के भाव को ,मज़हब मे ही छौड़ आता हूँ मैं !
 

  तेरी इस मज़बूरी  को ,मैं खुद ही गले लगता हूँ ,
  जब -जब देखू तेरी सूरत ,हर बार गैर नज़र आई !
    
  कहाँ गया वह जनतंत्र , क्यों ढून्ढ नहीं मैं पता हूँ ,
  कहाँ गए वो वादे उनके ,क्यों समझ नहीं मैं पता हूँ  !

 बेकासो -मजबूर इंसां को दुआ देता मैं जाता हूँ !

 (वंदना सिंह) 

शनिवार, 5 फ़रवरी 2011

नेता जी

एक नेता किस्मत के मारे , चुनाव मे हारे
आत्मा-हत्या  के इरादे से, रेलवे क्रोस्सिंग पर पधारे
कई गाड़िया गुज़र गई ,कुछ इधर- कुछ उधर
पर नेता जी खड़े रहे

मैंने शंकवाश  पुछा ?
आत्मा-हत्या करने आये हों?
या गाडियों के दर्शन करने?
नेता जी बोले
आत्मा-हत्या का इरादा तो  है ,
पर मनं मे बड़ा अफ़सोस है
ये मालगाड़ी है ,यात्री गाड़ी नहीं

हमने कहा ,इससे क्या फर्क पड़ता है,
शरीर तो इससे भी मरता है
नेता जी बोले !
नहीं मे अपनी आखरी इच्छा पूरी करूँगा
आजीवन अपनी सभा मे ,मैं दर्शको के लिए तरसता रहा हूँ
इसलिए मालगाड़ी से नहीं ,बल्कि यात्री गाड़ी से मरूँगा
जिससे प्यारे दर्शको के अंतिम दर्शन तो कर सकूँगा !

०५ .०२.२०११ 

बुधवार, 29 दिसंबर 2010

रजनीगंधा

                                               इंतज़ार मे बैठी हूँ की ,
                                              खिल सकू तुम्हरे आने पर!
                                               खोयी हूँ तुम्हारी यादो  मे ....
                                                इन पलकों को मूँद कर !
                                                
                                                तुम्हारे इंतज़ार मे ,मैं 
                                                फिर मुरझाई सी बैठी हूँ !
    
                                                बेकरार हूँ फिर से खिल जाने को ....
                                               उस पल को फिर से  पाने को !
                                            २९.१२.२०१० 

शुक्रवार, 3 सितंबर 2010

फासले

                               उज्जवल गाथा कैसे  गाऊं मधुर चांदनी रातो की ,
                              उन बीते पालो मे होने वाली  मीठी -मीठी बातों की ...
                              लगता है जैसे देखा था कोई सवप्न ......
                              आँखे खुली तो बीत गए वो लम्हे  उन रातो के
                             पलट दिए पन्ने तकदीर ने .....
                            जैसे जीवन की गाथाओ के ................
                                

                             बदल गए वो रिश्ते जो थे कभी हमने बनाये,
                             भूल गए वो पल जो कभी हमने साथ बिताये
                            ज़िन्दगी के साथ जीते ही चले गए ,
                                   बना दिए गए
                           बीच मे कई फांसले जैसे  नदी के हों दो
                                     '' किनारे '' 

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

''दिल्ली दिल वालो की '

ऐसा कहा जाता है की
                             'मुंबई पैसे वालो की ,और  'दिल्ली  दिल वालो की' | मै इस बात को सुनकर बहुत खुश होती थी की 'दिल्ली  दिल वालो की है , पर अब बड़ा अफ़सोस  होता है  की दिल्ली के लोगो का दिल अब मोम का नहीं बल्कि पत्थर  का  हों चुका है |
मै अपने इस लेख मे दो घटनाओ का ज़िक्र  करुँगी ,आप ही बताये की दिल्ली के लोगो का दिल कितना बड़ा है?

~ पहली घटना :-   शाम के वक़्त मेरे पिता जी बालकोनी मे खड़े थे ,की अचानक आवाज़ लगायी की जल्दी आओ तुम सब ,हम सभी भाई ,माँ और मै भाग कर आये ,की पता नहीं क्या हों गया ? तभी देखा की सामने सड़क पर एक काली गाडी रुकी ,उसके इंजन मे आग लगी हुई थी ,और वो व्यक्ति जल्दी से बहार आकर खड़ा हों गया ,पानी की ख़ोज करने लगा | उस सड़क  के बिल्कुल  ठीक सामने तीन  अपार्टमेन्ट  है ,वो व्यक्ति भाग कर गार्ड के पास पानी लेने गया ,और मयूर -जग ले  लाया और केनी से भर कर पानी डालने लगा ,पर धुँआ बढता ही जा रहा था ,काफी भीड़ बढ गयी थी पर वो अकेला ही पानी भरे और डाले | पानी कम था ,आग ज्यादा लग चुकी थी ,हम जा नहीं सकते थे ,क्युकी हमारे जाने से कोई लाभ नहीं था ,हम उस सड़क से दूर थे ,पर माँ ने कहा अग्नि-शामक दल (फायर ब्रेग्रेड) को फ़ोन कर दो ,भाई ने झट से फ़ोन कर दिया ,सबसे बड़ी बात की अग्नि शामक दल बिल्कुल पास मै ही है ३-४ अपार्टमेन्ट छोड़ कर |  सडक पर खड़े सब  लोग तमाशा देख रहे थे ,कोई उसकी मदद नहीं कर रहा ,उसने सड़क पर जाते  पानी के ट्रक को रोका ,पर वो नहीं रुका ,फिर पुलिस आ गयी ,और आग काफी लग गयी थी ,सीटे जलने लगी ,फिर पुलिस वाले ने भाग कर दूसरी सड़क पर गया ,और दूर से आते हुए पानी के ट्रक को बुलाया फिर ,कहीं जाकर कार मे लगी आग भुझी  .और अग्नि शामक दल ,तब आया ,जब आग भुज गयी थी सभी ने इस दल को फ़ोन  कर दिया था ,ये हाल है हमारे सरकारी दफ्तरों का | अगर वो अपार्टमेन्ट वाला भी पानी की  पइपे दे देता तो उसकी गाडी पहले ही बच जाती |



दूसरी घटना :- इसी तरह मै एक दिन मेट्रो मे कहीं जा रही थी ,मेट्रो मै काफी भीड़ थी ,पर मुझे सीट मिल गयी थी (किस्मत अच्छी थी ) आजकल तोः मेट्रो मे भी जाने से डर लगता है की चड़े-या नहीं क्युकी इतनी भीड़ की सांस लेने को जगह नहीं ...
मै बेठी हुई थी की एक महिला बार -२ अपनी सहेली से कह रही थी की आने वाला है राजेंद्र नगर ,उतरना है ,और वो आगे की और जाने लगी ,रास्ता मांगने लगी ,धीरे -२ आगे बडने की कोशिश कर रही थी ,की मुझे उत्तरने  दो मेरा स्टॉप आने वाला है  पर क्या हुआ की  उसका स्टॉप निकल गया वो उतर ही नहीं पायी ,एक तो भीड़ ...दूसरा कोई रास्ता देने को तैयार नहीं  वो चिल्लाई की मुझे उतरना है भई रास्ता दो ,सब गूंगे- बहरे  की तरह देखते रहे |
वो महिला रो पड़ी ... वो दिल्ली की नहीं थी ,मुंबई से यहाँ किसी रिश्तेदार के घर आई थी |
बोली की बड़े बतामीज़ है यहाँ के लोग !
हमारी मुंबई मे तो हर किसी की मदद के लिए सब तैयार  रहते है ,दिल से सभी मदद करते है,पर यहाँ तो ....
उसकी आँखों मे आंसू  झलक आये और वो बोली ...ऐसे ही मैंने सुना था की दिल्ली दिल वालो की ...दिख रहा है ,दिल्ली वालो का दिल ....|
 
धन्यवाद !
वंदना सिंह
२०.८.१० 

सोमवार, 16 अगस्त 2010

मेरी और से -

                     शमा करना 

        कोई कैसा भी बर्ताव करे ,तम उसे  सदेव शमा करो
        ऐसा इंसान बनो ,कोई तुमसे लड़े-झगडे ,पर तुम शमा करो ,
       क्रोध मै इंसान ,दानव बन जाता है ,पर तुम देव बनो !
 


                                                                                         सत्य 
                                                                               
                                                                       सच बोलो ,असत्य  बोलने से तुम  स्वम को धोखा देते हों 
                                                                      तत्पशचात  दूसरो को ,अपने प्रति सच्चे बनो .
                                                                     सत्य बोलो, सत्य सोचो,सत्य व्यवहार करो . 








सप्रेम -विनम्रता 

                    अपने से पहले दूसरो की सेवा करो ,
                   सदेव  प्रेम-पूर्वक व्यवहार  करो 
                 कभी किसी को दुःख मत पहुचाओ 
                 किसी से गलत नहीं बोलो ,किसी को छो टा  मत समझो 
                अपने प्रति ईमानदार रहो 


                ''   सेवा से सेवक ऊँचा उठता है ''


यदि तुम किसी  अस्वस्थ्य  व्यक्ति की सेवा करते हों ,या 
किसी पीड़ित  व्यक्ति के पास उसकी सहायता के लिए खड़े होते हों,तो  
 'तुम ' एक ''देवी '' का कार्य कर रहे हों.


धन्यवाद !

बुधवार, 11 अगस्त 2010

मेरा भारत महान !

हम आज भी खूब नारे लगते है की मेरा भारत महान ,पर किस सन्दर्भ मे ,उसकी महानता से या यहाँ के लोगो की हरक़तो से ! कल मैं बाज़ार जा रही थी ,की एक चोराहे पर ट्राफ्फिक की काफी भीड़ देखी ,यहाँ मे अक्सर ही ये भीड़ देखती हूँ ,पर कल तो गजब ही था ,यह एक छोटा सा चोराहा है,यहाँ लाल-बत्ती नहीं थी ,पर अब बन गयी है ,लकिन काफी समय हों गया ,अभी तक चालू नहीं हुई ।

काफी भीड़ थी यहाँ,जाम सा लग गया ,मुझे लगा शायद कुछ हों गया है (घटना), पर जब करीब जाकर देखा तो मैं हंस पड़ी एक विंग्यार्थ रूप में! की हम भारत वासी कब सुधरेंगे ...किसी मे भी धेर्य नहीं है,वैसे नियमो की बात करते है ,भाषण भी हर कोई अच्छा ही दे देता है , पर ये नियम हम खुद पर लागू करते है क्या ?

चारो तरफ से आती गाड़िया ,मानो रुकना ही न चाहती हों ,हर एक को जल्दी ,चाहे जान की बाज़ी ही क्यों न लगानीपूर्ण समन्वित पड़े । चारो तरफ से बढ रही गाड़िया ,एक -दुसरे से बेखबर ...... और नज़ारा क्या होता है ?.............

फिर थम गया ट्राफ्फिक ...खामोशी छा गयी ,कुछ देर के लिए ही नहीं बल्कि आधे-एक घंटे के लिए ...सोच कर देखिये ...आप भी हंस पडेंगे । बीच मे चारो तरफ से गाड़िया फँस गयी ,इधर-उधर ,यहाँ -वहां ,कोई कहीं अटक गयी ,तो कोई बीच मे रोकर बैठ गया और एक -दुसरे की तरफ भोली से सूरत बनाकर बैठे है की क्या करे ? कौन पीछे हटाये ,कौन रास्ता दे और आखिर-कार एक घंटा हों गया । मैं बाज़ार से वापास भी आ गयी तो देखा तीन ट्राफ्फिक पुलिस वाले आये ,और इस उलझी पहेली को सुलझाने लगे ।

हा हा हा ....मेरा भारत महान !

धन्यवाद
वंदना सिंह