गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

कहाँ गया जनतंत्र



                         बेकसौ -मजबूर  इंसां को दुआ देता हूँ मैं,
                         वार करता है कोई तो मुस्कुरा देता हूँ मैं !

                        प्यार से मिले जो कोई , तो  गले लगा लेता हूँ मैं  ,
                        नफ़रत की आग को , सीने मे दबा देता हूँ मैं  !

  










                                                                         



  बेकसौ -मजबूर  इंसां को दुआ  देता हूँ मैं ,

  उच्च -नीच के भाव को ,मज़हब मे ही छौड़ आता हूँ मैं !
 

  तेरी इस मज़बूरी  को ,मैं खुद ही गले लगता हूँ ,
  जब -जब देखू तेरी सूरत ,हर बार गैर नज़र आई !
    
  कहाँ गया वह जनतंत्र , क्यों ढून्ढ नहीं मैं पता हूँ ,
  कहाँ गए वो वादे उनके ,क्यों समझ नहीं मैं पता हूँ  !

 बेकासो -मजबूर इंसां को दुआ देता मैं जाता हूँ !

 (वंदना सिंह)