'मुंबई पैसे वालो की ,और 'दिल्ली दिल वालो की' | मै इस बात को सुनकर बहुत खुश होती थी की 'दिल्ली दिल वालो की है , पर अब बड़ा अफ़सोस होता है की दिल्ली के लोगो का दिल अब मोम का नहीं बल्कि पत्थर का हों चुका है |
मै अपने इस लेख मे दो घटनाओ का ज़िक्र करुँगी ,आप ही बताये की दिल्ली के लोगो का दिल कितना बड़ा है?
~ पहली घटना :- शाम के वक़्त मेरे पिता जी बालकोनी मे खड़े थे ,की अचानक आवाज़ लगायी की जल्दी आओ तुम सब ,हम सभी भाई ,माँ और मै भाग कर आये ,की पता नहीं क्या हों गया ? तभी देखा की सामने सड़क पर एक काली गाडी रुकी ,उसके इंजन मे आग लगी हुई थी ,और वो व्यक्ति जल्दी से बहार आकर खड़ा हों गया ,पानी की ख़ोज करने लगा | उस सड़क के बिल्कुल ठीक सामने तीन अपार्टमेन्ट है ,वो व्यक्ति भाग कर गार्ड के पास पानी लेने गया ,और मयूर -जग ले लाया और केनी से भर कर पानी डालने लगा ,पर धुँआ बढता ही जा रहा था ,काफी भीड़ बढ गयी थी पर वो अकेला ही पानी भरे और डाले | पानी कम था ,आग ज्यादा लग चुकी थी ,हम जा नहीं सकते थे ,क्युकी हमारे जाने से कोई लाभ नहीं था ,हम उस सड़क से दूर थे ,पर माँ ने कहा अग्नि-शामक दल (फायर ब्रेग्रेड) को फ़ोन कर दो ,भाई ने झट से फ़ोन कर दिया ,सबसे बड़ी बात की अग्नि शामक दल बिल्कुल पास मै ही है ३-४ अपार्टमेन्ट छोड़ कर | सडक पर खड़े सब लोग तमाशा देख रहे थे ,कोई उसकी मदद नहीं कर रहा ,उसने सड़क पर जाते पानी के ट्रक को रोका ,पर वो नहीं रुका ,फिर पुलिस आ गयी ,और आग काफी लग गयी थी ,सीटे जलने लगी ,फिर पुलिस वाले ने भाग कर दूसरी सड़क पर गया ,और दूर से आते हुए पानी के ट्रक को बुलाया फिर ,कहीं जाकर कार मे लगी आग भुझी .और अग्नि शामक दल ,तब आया ,जब आग भुज गयी थी सभी ने इस दल को फ़ोन कर दिया था ,ये हाल है हमारे सरकारी दफ्तरों का | अगर वो अपार्टमेन्ट वाला भी पानी की पइपे दे देता तो उसकी गाडी पहले ही बच जाती |
दूसरी घटना :- इसी तरह मै एक दिन मेट्रो मे कहीं जा रही थी ,मेट्रो मै काफी भीड़ थी ,पर मुझे सीट मिल गयी थी (किस्मत अच्छी थी ) आजकल तोः मेट्रो मे भी जाने से डर लगता है की चड़े-या नहीं क्युकी इतनी भीड़ की सांस लेने को जगह नहीं ...
मै बेठी हुई थी की एक महिला बार -२ अपनी सहेली से कह रही थी की आने वाला है राजेंद्र नगर ,उतरना है ,और वो आगे की और जाने लगी ,रास्ता मांगने लगी ,धीरे -२ आगे बडने की कोशिश कर रही थी ,की मुझे उत्तरने दो मेरा स्टॉप आने वाला है पर क्या हुआ की उसका स्टॉप निकल गया वो उतर ही नहीं पायी ,एक तो भीड़ ...दूसरा कोई रास्ता देने को तैयार नहीं वो चिल्लाई की मुझे उतरना है भई रास्ता दो ,सब गूंगे- बहरे की तरह देखते रहे |
वो महिला रो पड़ी ... वो दिल्ली की नहीं थी ,मुंबई से यहाँ किसी रिश्तेदार के घर आई थी |
बोली की बड़े बतामीज़ है यहाँ के लोग !
हमारी मुंबई मे तो हर किसी की मदद के लिए सब तैयार रहते है ,दिल से सभी मदद करते है,पर यहाँ तो ....
उसकी आँखों मे आंसू झलक आये और वो बोली ...ऐसे ही मैंने सुना था की दिल्ली दिल वालो की ...दिख रहा है ,दिल्ली वालो का दिल ....|
धन्यवाद !
वंदना सिंह
२०.८.१०
दूसरी घटना :- इसी तरह मै एक दिन मेट्रो मे कहीं जा रही थी ,मेट्रो मै काफी भीड़ थी ,पर मुझे सीट मिल गयी थी (किस्मत अच्छी थी ) आजकल तोः मेट्रो मे भी जाने से डर लगता है की चड़े-या नहीं क्युकी इतनी भीड़ की सांस लेने को जगह नहीं ...
मै बेठी हुई थी की एक महिला बार -२ अपनी सहेली से कह रही थी की आने वाला है राजेंद्र नगर ,उतरना है ,और वो आगे की और जाने लगी ,रास्ता मांगने लगी ,धीरे -२ आगे बडने की कोशिश कर रही थी ,की मुझे उत्तरने दो मेरा स्टॉप आने वाला है पर क्या हुआ की उसका स्टॉप निकल गया वो उतर ही नहीं पायी ,एक तो भीड़ ...दूसरा कोई रास्ता देने को तैयार नहीं वो चिल्लाई की मुझे उतरना है भई रास्ता दो ,सब गूंगे- बहरे की तरह देखते रहे |
वो महिला रो पड़ी ... वो दिल्ली की नहीं थी ,मुंबई से यहाँ किसी रिश्तेदार के घर आई थी |
बोली की बड़े बतामीज़ है यहाँ के लोग !
हमारी मुंबई मे तो हर किसी की मदद के लिए सब तैयार रहते है ,दिल से सभी मदद करते है,पर यहाँ तो ....
उसकी आँखों मे आंसू झलक आये और वो बोली ...ऐसे ही मैंने सुना था की दिल्ली दिल वालो की ...दिख रहा है ,दिल्ली वालो का दिल ....|
धन्यवाद !
वंदना सिंह
२०.८.१०