बेकसौ -मजबूर इंसां को दुआ देता हूँ मैं,
वार करता है कोई तो मुस्कुरा देता हूँ मैं !
प्यार से मिले जो कोई , तो गले लगा लेता हूँ मैं ,
नफ़रत की आग को , सीने मे दबा देता हूँ मैं !
बेकसौ -मजबूर इंसां को दुआ देता हूँ मैं ,
उच्च -नीच के भाव को ,मज़हब मे ही छौड़ आता हूँ मैं !
तेरी इस मज़बूरी को ,मैं खुद ही गले लगता हूँ ,
जब -जब देखू तेरी सूरत ,हर बार गैर नज़र आई !
कहाँ गया वह जनतंत्र , क्यों ढून्ढ नहीं मैं पता हूँ ,
कहाँ गए वो वादे उनके ,क्यों समझ नहीं मैं पता हूँ !
बेकासो -मजबूर इंसां को दुआ देता मैं जाता हूँ !
(वंदना सिंह)
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