हम आज भी खूब नारे लगते है की मेरा भारत महान ,पर किस सन्दर्भ मे ,उसकी महानता से या यहाँ के लोगो की हरक़तो से ! कल मैं बाज़ार जा रही थी ,की एक चोराहे पर ट्राफ्फिक की काफी भीड़ देखी ,यहाँ मे अक्सर ही ये भीड़ देखती हूँ ,पर कल तो गजब ही था ,यह एक छोटा सा चोराहा है,यहाँ लाल-बत्ती नहीं थी ,पर अब बन गयी है ,लकिन काफी समय हों गया ,अभी तक चालू नहीं हुई ।
काफी भीड़ थी यहाँ,जाम सा लग गया ,मुझे लगा शायद कुछ हों गया है (घटना), पर जब करीब जाकर देखा तो मैं हंस पड़ी एक विंग्यार्थ रूप में! की हम भारत वासी कब सुधरेंगे ...किसी मे भी धेर्य नहीं है,वैसे नियमो की बात करते है ,भाषण भी हर कोई अच्छा ही दे देता है , पर ये नियम हम खुद पर लागू करते है क्या ?
चारो तरफ से आती गाड़िया ,मानो रुकना ही न चाहती हों ,हर एक को जल्दी ,चाहे जान की बाज़ी ही क्यों न लगानीपूर्ण समन्वित पड़े । चारो तरफ से बढ रही गाड़िया ,एक -दुसरे से बेखबर ...... और नज़ारा क्या होता है ?.............
फिर थम गया ट्राफ्फिक ...खामोशी छा गयी ,कुछ देर के लिए ही नहीं बल्कि आधे-एक घंटे के लिए ...सोच कर देखिये ...आप भी हंस पडेंगे । बीच मे चारो तरफ से गाड़िया फँस गयी ,इधर-उधर ,यहाँ -वहां ,कोई कहीं अटक गयी ,तो कोई बीच मे रोकर बैठ गया और एक -दुसरे की तरफ भोली से सूरत बनाकर बैठे है की क्या करे ? कौन पीछे हटाये ,कौन रास्ता दे और आखिर-कार एक घंटा हों गया । मैं बाज़ार से वापास भी आ गयी तो देखा तीन ट्राफ्फिक पुलिस वाले आये ,और इस उलझी पहेली को सुलझाने लगे ।
हा हा हा ....मेरा भारत महान !
धन्यवाद
वंदना सिंह